द. कोरिया के सिओल में एनएसजी के 48 सदस्य देशों की बैठक खत्म हो गई है। हांलाकि बैठक में भारत की सदस्यता पर कोई फैसला नहीं हुआ है। चीन ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं करने के कारण भारत की सदस्यता का विरोध किया है।
चीन के इस तर्क का दस औऱ देशों ने समर्थन किया, नतीजतन अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और तमाम बड़े मुल्कों के समर्थन के बावजूद भारत की एनएसजी में सदस्यता पर कोई फैसला नहीं हो पाया।
शंघाई सहयोग संगठन की 16वीं बैठक में हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में हैं।
प्रधानमंत्री ने आज ताशकंद में बेलारूस के राष्ट्रपति अलैक्जेंडर लुकाशेन्को से मुलाक़ात की। दोनों नेताओं के बीच हुई द्विपक्षीय वार्ता में आपसी हितों के कई मुद्दों पर विचार साझा किए गए।
एनएसजी में सदस्यता मिलने से परमाणु तकनीक और उपकरणों में भारत सदस्य देशों के साथ व्यापार कर सकेगा।
इस क्षेत्र में अत्याधुनिक तकनीक भी भारत हासिल कर सकेगा। साथ ही यूरोनियम सहित दूसरे ईंधन की आपूर्ति के लिए भी भारत के पास कई देशों के साथ सौदा करने के विकल्प होंगे।
इसके अलावा पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से अंतरराष्ट्रीय समूह में भारत अपने तमाम वादों पर भी खरा उतर सकेगा, क्योंकि परमाणु ऊर्जा भारत को परंपरागत स्रोतों से ऊर्जा हासिल करने के एक विकल्प के रूप में उपलब्ध होगा।
एनएसजी में सदस्यता के लिए विश्व की बड़ी शक्तियों ने भारत का समर्थन किया है। अमेरिका ने न केवल समर्थन किया, बल्कि अपने मित्र देशों से भारत के पक्ष में वकालत करने को भी कहा है।
एनएसजी की सदस्यता हासिल करने की शर्त यह है कि इस पर सभी 48 सदस्य देशों की सहमति ज़रूरी है और अभी तक चीन खुलकर भारत के समर्थन में सामने नहीं आया है।
चीन इस प्रतिष्ठित क्लब की सदस्यता के लिए भारत के दावे का यह कहकर विरोध कर रहा है कि उसने परमाणु अप्रसार संधि एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं।