सरकार अब इसे सोमवार या मंगलवार को राज्यसभा में पारित कराने की कोशिश करेगी।
इस विधेयक के कानून बनने के बाद जो कंपनियां घाटे में चल रही है या वित्तीय मुश्किलों का सामना कर रही हैं उनके लिये खुद को दीवालिया घोषित करवाना आसान होगा।
विधेयक में प्रावधान है कि किसी कंपनी को बंद करने के बारे में 180 दिन के भीतर फैसला लेना होगा। हालांकि इसके लिये 75 प्रतिशत कर्ज़दाताओं की मंजूरी चाहिये होगी।
दीवालिया घोषित करने के आवेदनों के तेजी और समय बद्ध ढंग से निपटारे से भारतीय बैंकों और देनदारों के लिये अपना कर्ज वसूलना आसान होगा।
किसी कंपनी के दीवालिया होने पर देनदारियां चुकाने क के मामले में कंपनी की संपत्ति पर पहला अधिकार कंपनी के कर्मचारियों का होगा और बकाये के भुगतान में उन्हें सर्वप्रथम रखा जायेगा।
कंपनी की संपत्ति बेचने की लिए संबंधित विषय से जुड़े विशेषज्ञों की खास टीम बनाई जाएगी।
ऐसा भी नहीं है कि घाटे से जूझ रही कंपनी को बंद ही किया जायेगा। बल्कि ऐसी कंपनी को दोबारा पुनर्जीवित करने के विकल्पों पर भी गौर किया जायेगा।
विकसित देशों में ऐसे कानूनों की वजह से व्यापार करना काफी आसान होता है। भारत में घाटे में पड़ी कंपनियों को बंद करने और उनके देनदारों के बीच बकाये के भुगतान की प्रक्रिया बेहद लंबी और जटिल है जिसकी वजह से घाटे में चल रही कंपनियों को बंद करना मुश्किल होता है।
इस विधेयक के कानून बन जाने से कारोबार करना काफी आसान हो जायेगा।