रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर को 6 मई को लोकसभा में अपनी पूरी बात रखने का मौका मिला जो कि उन्हें 4 मई को राज्य सभा में नहीं मिल पाया था।
रक्षा मंत्री पर्रिकर ने कहा कांग्रेस के बड़े नेताओं का नाम लिये बिना कहा कि कि वायु सेना प्रमुख एसपी त्यागी, गौतम खेतान तो बहती गंगा में हाथ धोने वाले छोटे नाम है। पर्रिकर ने कहा कि सरकार बड़े नामों का पता लगा कर रहेगी जिन्होंने रिश्वत ली।
इस मसले पर सदन में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने तमाम दस्तावेज़ों के जरिए साफ किया कि कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने आगस्ता वेस्टलैंड को हेलीकॉप्टर का ठेका देने के लिए कैसे हर तरह की रियायत दी।
इटली के मिलान अपील कोर्ट फैसले का हवाला देते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि मौजूदा जांच उन पर केंद्रित होगी, जिनका नाम इटली की अदालत के फैसले में आया है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि शर्तों में हेलीकॉप्टर के केबिन की उंचाई 1.8 मीटर करने की शर्त अनिवार्य रूप से डाली गई और यह जान-बूझकर किसी कंपनी को बाहर करने के उद्देश्य से किया गया। इस शर्त के कारण बाकी सभी कंपनियां दौड़ से बाहर हो गयीं।
पर्रिकर ने कहा कि कंपनी को दाम भी छह गुना दिया गया जो कि वायुसेना द्वारा बतायी गयी मानक कीमत से बहुत ज्यादा था।
रक्षा मंत्री ने कहा कि आरएफपी (Request for Proposal) इटली की कंपनी को जारी किया गया था जबकि टेंडर में सप्लाई का मौका कंपनी बदल कर उसी ग्रुप की यूके की कंपनी आगस्ता वेस्टलैण्ड इंटरनेशनल को दे दिया गया जो कि टेंडर की शर्तों का उल्लंघन है।
रक्षा मंत्री ने कांग्रेस की इस दलील को माना कि रक्षा खरीद नीति में इस बात का प्रावधान है कि हथियारों या उपकरणों का परीक्षण देश के बाहर किया जा सकता है।
लेकिन उन्होंने साफ किया कि इस मामले में टेंडर में साफ लिखा था कि हेलीकाप्टर का परीक्षण भारत में किया जायेगा इसके बावजूद परीक्षण भारत के बाहर यूके में किये गये।
रक्षा मंत्री ने कहा कि नियम का उल्लंघन इसलिये भी है क्योंकि एक आगस्ता वेस्टलैण्ड के जिस हेलीकाप्टर AW101 को खरीदना था उसके बजाय रिप्रजेन्टेटिव माडल पर परीक्षण किये गये क्योंकि उस समय AW101 माडल का डेवलपमेंट चल ही रहा था।
यूपीए सरकार ने भ्रष्टाचार का मामला आने के बाद कंपनी को लिखने की बजाए उच्चायोग से संपर्क किया।
रक्षा मंत्री ने कहा कि तत्कालीन सरकार ने जो भी कार्रवाई की वो परिस्थिति के कारण मजबूरी में की गई। मनोहर पर्रिकर ने बताया कि हमने सरकार में आने के बाद फिनमैकेनिका के उन्हीं कॉन्ट्रैक्ट को आगे बढ़ाया, जो रक्षा जरूरतों के हिसाब से आवश्यक था।
इसके अलावा बाकी सारे कॉन्ट्रैक्ट रोक दिए थे। यूपीए के नेताओं पर गलत बयानी का आरोप लगाते हुए पर्रिकर ने कहा कि 22 फरवरी 2014 को यूपीए सरकार ने कथित बैन के बाद भी फिनमैकेनिका से सामान लिया।
पर्रिकर ने कहा कि सरकार इस मामले में तेजी से जांच सुनिश्चित करेगी और ये भी तय करेगी कि इस घोटाले का हस्र बोफोर्स घोटाले की तरह न हो।
कांग्रेस की ओर से भी बहस के दौरान तमाम तर्क रखे गए और पार्टी ने मामले की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कराने की मांग की। हालांकि सरकार पहले ही इस मांग को खारिज कर चुकी है।
पार्टी सासंद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सरकार पर हमला बोला। सिंधिया ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को शेरनी बताये हुये कहा कि सरकार का उनकी नेता को निशाना बनाने का दांव उलटा पड़ेगा।
पार्टी ने रक्षामंत्री के जवाब से असंतुष्ट होकर सदन से वाकआउट किया। सदन में इस मामले पर हुई चर्चा के दौरान तमाम सदस्यों ने भ्रष्टाचार पर चिंता जाहिर करते हुए तेजी से जांच की मांग की।
पहले राज्यसभा और फिर लोकसभा में हुई चर्चा के साथ ही सरकार ने साफ कर दिया है कि वो इस सौदे में हुए भ्रष्टाचार पर बेहद गंभीर है और रिश्वत लेने वालों को सज़ा जरूर मिलेगी।