कैथोलिक धर्म गुरु पोप फ्रांसिस ने रविवार को भारत में गरीबों की आजन्म सेवा करने वाली नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त नन मदर टेरेसा को संत घोषित कर दिया।
इस मौके पर भारत और दुनिया भर से हजारों की तादाद में लोग मौजूद थे। कैथोलिक न्यूज एजेंसी ने पोप के हवाले से कहा, ‘‘हम कोलकाता की धन्य टेरेसा को संत घोषित व परिभाषित करते हैं।’’
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिए जाने पर कहा कि यह एक स्मरणीय और गर्व करने का क्षण है।
सेंट पीटर्स चौराहे पर इस अवसर का गवाह बने हजारों लोगों में भारतीय भी शामिल रहे, जिन्होंने अपने हाथों में तिरंगा थाम रखा था।
पोप फ्रांसिस ने कहा, ‘‘हम उन्हें संतों की श्रेणी में स्वीकार करते हैं और अब से वह पूरी दुनिया के सभी कैथोलिक चर्चों में संत के रूप में पूजी जाएंगी। हे परमपिता, हे ईशू, हे पवित्र आत्माएं इसे स्वीकार करें।’’
वेटिकन प्रेस विभाग के अनुसार, इस अवसर का गवाह बनने करीब 1,20,000 लोग इकट्ठा हुए थे।
मदर टेरेसा के निधन के बाद से कैथोलिक और गैर-कैथोलिक इसाई समान रूप से उन्हें संत की उपाधि दिए जाने का इंतजार कर रहे थे।
पोप ने कहा, ‘मदर टेरेसा ने सेवा के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया और दूसरे के प्राणों की रक्षा करती रहीं, खासकर अजन्मे बच्चों और हाशिए पर धकेल दिए गए समाज के वंचित तबके की। वह दैवीय दया, करुणा का सागर थीं।’
टेरेसा को उनकी 19वीं पुण्यतिथि की पूर्वसंध्या पर संत की उपाधि दी गई।
अल्बानिया की राजधानी स्कोप्ये में 26 अगस्त, 1910 को जन्मीं मदर टेरेसा ने 1950 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की।
इसी संस्था के तहत मदर टेरेसा ने कोलकाता की मलिन बस्तियों में गरीबों की आजीवन सेवा करते हुए पूरा जीवन समर्पित कर दिया और 87 वर्ष की आयु में पांच सितम्बर, 1997 को कोलकाता में उनका निधन हुआ।