चुनाव सुधार की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो विशेष पहल में से एक पर मुख्य चुनाव आयुक्त ने सहमति जताई है लेकिन दूसरे प्रस्ताव के लिए कहा है कि वह व्यावहारिक नहीं है।
मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने कहा है कि भारत में अनिवार्य मतदान की व्यवस्था लागू करना व्यवहारिक नहीं है। लेकिन उन्होंने कहा है कि अगर पार्टियां सहमत हों तो लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ हो सकते हैं।
जैदी ने पहले अंतरराष्ट्रीय मतदाता शिक्षा सम्मलेन का उद्घाटन करते हुए कहा कि अनिवार्य मतदान की व्यवस्था पर पहले भी चर्चा हुई है, लेकिन भारत के लिए यह व्यावहारिक नहीं है।
हालांकि उन्होंने एक साथ सभी चुनाव कराने के प्रस्ताव पर सहमति जताई। उन्होंने कहा कि अगर सभी पार्टियां तैयार हों और सरकार पर्याप्त संसाधन व सुरक्षा बल उपलब्ध कराए तो चुनाव आयोग लोकसभा और विधानसभाओं का चुनाव एक साथ कराने के लिए तैयार है।
मुख्य चुनाव आयुक्त ने उत्तर प्रदेश और दूसरे राज्यों के चुनावों की तारीखों के बारे में कहा कि त्योहारों और बच्चों की परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए इसकी घोषणा की जाएगी।
एक साथ चुनाव कराने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा था। इस बारे में पूछे जाने पर डॉ. जैदी ने कहा – अगर सभी पार्टियां एक साथ चुनाव कराए जाने के पक्ष में हैं और केंद्र सरकार हमें पर्याप्त सुरक्षा बल उपलब्ध कराए और संसाधन मुहैया कराए तो लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ करने के मुद्दे पर हमें कोई आपत्ति नहीं हैं।
अगले साल होने वाले चुनावों की तारीखों के बारे में उन्होंने कहा- चुनाव कई चरण में होंगे, हम आने वाले त्योहारों और बच्चों की परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए इस बारे में फैसला करेंगे और तब इसकी घोषणा की जाएगी।
एक और सवाल के जवाब में कहा कि चुनाव आयोग चुनाव में धन के बेजा इस्तेमाल के खिलाफ कारवाई कर रहा है और आने वाले दिनों में इसे रोकने के लिए कड़ी करवाई करने की योजनाएं बनेंगी।
मुख्य चुनाव आयुक्त डॉ. जैदी ने अनिवार्य मतदान के बारे में कहा कि यह विचार व्यावहारिक नहीं लगता। कुछ महीने पहले सरकार ने भी लोकसभा में इसी तरह की मांग को खारिज कर दिया था।
जैदी ने कहा- कुछ देशों की तरह अनिवार्य मतदान पहले भी चर्चा का विषय रहा है। हमें यह विचार इतना व्यावहारिक नहीं लगा। लेकिन हम इस बारे में विचार सुनना चाहेंगे।
फरवरी में अनिवार्य मतदान पर लोकसभा में पेश एक गैर सरकारी विधेयक पर जवाब देते हुए तत्कालीन कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा था कि वे सदस्यों की सोच की तारीफ करते हैं लेकिन सरकार के लिए अनिवार्य मतदान को शुरू करना और वोट नहीं डालने वालों को सजा देना संभव नहीं होगा।