अपने पति द्वारा दुबई से फोन पर तलाक दिए जाने के बाद एक मुस्लिम महिला ने एक से ज्यादा शादी, तीन तलाक (तलाक़-ए-बिद्दत) और निकाह हलाला जैसी मुस्लिम धर्म की प्रथाओं को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है।
महिला की इस अर्जी पर न्यायालय ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया। तलाक़-ए-बिद्दत के तहत कोई मुस्लिम पुरूष एक ही तुह्र (दो मासिक धर्म के बीच की अवधि) या संभोग के बाद एक तुह्र में एक से ज्यादा बार तलाक बोलकर अपनी पत्नी को तलाक देता है या फिर एक ही बार में तीन बार तलाक बोलकर एकतरफा तलाक देता है।
निकाह हलाला किसी महिला की किसी अन्य व्यक्ति से शादी से जुड़ी प्रथा है जिसमें पुरूष एक महिला को तलाक दे देता है ताकि महिला का पिछला पति उससे फिर शादी कर सके।
अपने पति द्वारा दुबई से फोन पर तीन बार तलाक बोलने के कारण तलाकशुदा हुईं 26 साल की मुस्लिम महिला, जो कोलकाता की रहने वाली है, की अर्जी पर विचार करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी एस ठाकुर, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की
पीठ ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय एवं अन्य को नोटिस भेजा।
अदालत ने वकील वी के बैजू के जरिए दाखिल इस अर्जी को उन याचिकाओं के साथ जोड़ दिया जिन पर छह सितंबर को सुनवाई होने वाली है।
याचिकाकर्ता इशरत जहां ने न्यायालय से यह घोषित करने की मांग की है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट-1937 की धारा-2 असंवैधानिक है क्योंकि यह अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद-15 (भेदभाव के खिलाफ अधिकार), अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) और अनुच्छेद-25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन है।