सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार के महाधिवक्ता मुकुल रोहतगगी से कहा है कि वह उत्तराखंड विधानसभा में अपनी देखरेख में शक्ति परीक्षण करवाने की संभावना पर सरकार से निर्देश लें और न्यायालय को सूचित करें।
राज्य में राष्ट्रपति शासन को रद्द करने वाले उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र की अपील की सुनवाई को न्यायालय ने कल तक के लिए स्थगित कर दिया।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के लिए आज दोपहर दो बजे का समय निर्धारित किया था।
न्यूज चैनलों की रिपोर्टों के मुताबिक मंगलवार सुबह पीठ ने सुबह साढ़े दस बजे इस मामले से संबंधित पक्षों को बताया कि वह आज इसपर सुनवाई नहीं कर सकती क्योंकि न्यायमूर्ति सिंह दोपहर दो बजे प्रवेश परीक्षाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही एक अन्य पीठ में शामिल होंगे।
इस संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने अपने सुझाव को दोहराया कि केंद्र को असल स्थिति का पता लगाने के लिए अपने निरीक्षण में विधानसभा में शक्ति परीक्षण करवाने पर विचार करना चाहिए।
न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा कि वह इस मुद्दे पर निर्देश लें और न्यायालय को कल इसके बारे में बताएं।
न्यूज चैनलों की खबरों के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से पूछा है कि क्या आर्टिकल 175 (2) के तहत गवर्नर सरकार को फ्लोर टेस्ट के लिए मैसेज भेज सकते थे?
दूसरा क्या क्या गवर्नर असेंबली के स्पीकर से वोटों के डिवीजन के बारे में सवाल कर सकते हैं? क्योंकि दोनों ही संवैधानिक पद हैं।’
तीसरा क्या फ्लोर टेस्ट में देरी राज्य में प्रेसिडेंट रूल लगाने का आधार हो सकती है?
चौथा क्या ऐसी परंपरा है कि जब मनी बिल पास नहीं होता है तो सरकार गिर जाती है। लेकिन अगर स्पीकर इस बारे में कुछ नहीं कहते हैं तो किसके लिए यह कहना जरूरी है कि मनी बिल पास नहीं हुआ है?
पांचवा अप्रोप्रिएशन बिल के पेश होने की स्टेज क्या थी और इस बिल के संबंध में प्रेसिडेंट रूल की स्थिति कब आई
‘क्या स्पीकर का विधायकों को डिस्क्वालिफाई करना आर्टिकल 356 के तहत प्रेसिडेंट रूल लगाने के मकसद से जुड़ा मुद्दा है?’
आखिर में अदालत ने ये भी पूछा कि क्या राष्ट्रपति शासन लागू करने के मामलों में राष्ट्रपति विधानसभा के अंदर हुई कार्यवाही को भी आधार मानते हैं?