जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला सर्वसम्मति से दिया है। पीठ के दो जजों जस्टिस दीपक मिश्रा और मदन लोकुर ने अलग से फैसले दिए हैं लेकिन उन्होंने तीन जजों के मुख्य फैसले से सहमति जताई।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस संदर्भ में अभूतपूर्व है कि इससे पहले भी उसने राज्यों में लगाए गए राष्ट्रपति शासनों को अवैध ठहराया है लेकिन सरकारों को बहाल करने का आदेश कभी नहीं दिया।
कोर्ट ने ऐसे मामले या तो सदन में शक्ति परीक्षण पर छोड़े हैं या फिर राज्यों में चुनाव करवाने का रास्ता साफ किया है।
कोर्ट के फैसले के बाद भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने वाले मुख्यमंत्री कालिखो पुल को अपना इस्तीफा देना होगा। हालांकि पुल ने कहा कि वह इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे।
केंद्र सरकार अरुणाचल प्रदेश की मौजूदा स्थिति पर स्पष्टता के लिए गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी। वह कोर्ट के 15 दिसंबर से पूर्व की स्थिति की बहाली पर स्पष्टीकरण की मांग करेगी।
राज्यपाल संवैधानिक प्रावधानों और विधानसभा के कामकाज के नियमों को दरकिनार कर अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकते। राज्यपाल अपनी हिसाब से कभी भी और कहीं भी विधानसभा का सत्र नहीं बुला सकते।
संविधान के तहत राज्यपाल कैबिनेट की सलाह पर काम करता है लेकिन इस मामले में राज्यपाल ने सलाह की उपेक्षा कर फैसला लिया अगर परिस्थितियां सही नहीं थी तो राज्यपाल को मामले को राष्ट्रपति तक पहुंचाना चाहिए था लेकिन उन्होंने अकेले निर्णय लिया।
राज्यपाल सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने को कह सकते थे लेकिन उन्होंने विधानसभा सत्र बुलाकर स्पीकर के खिलाफ प्रस्ताव पर चर्चा को कहा।